Contract Employees Big News: सभी संविदा कर्मचारी जो कि पिछले काफी लंबे समय से नियमितिकरण हेतु काफी मांग कर रहे हैं इसी बीच संविदा कर्मचारी हेतु दीवाली के बाद एक काफी बड़ा तोहफा फिर से मिल चुका है। सभी संविदा कर्मचारियों हेतु नियमितीकरण का जो रास्ता वह पूरी तरीके से साफ हो चुका है। दरअसल हाई कोर्ट के द्वारा काफी बड़ा फैसला सुनाते हुए यह कहा गया है कि राज्य सरकार किसी भी कर्मचारी का बिल्कुल भी शोषण यहां पर नहीं कर सकती है और अस्थाई पदों पर रखते हुए उन्हें नियमितीकरण से वंचित रखना संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के यहां पर पूरी तरीके से उल्लंघन माना जा रहा है।
संविदा कर्मचारियों की नियुक्तिकरण पर बड़ा फैसला
यह जो ऐतिहासिक फैसला है जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ के माध्यम से यहां पर सुनाया गया है। आपको बता दिया जाता है नियमतिकरण हेतु दो संविदा कर्मचारियों ने हाई कोर्ट के यहां पर दरवाजा खटखटाया था याचिका कर्ता दलील देते हुए यहां पर यह लिखा था कि वह क्रमशः 1979 और 1982 से लगातार कार्य यहां पर कर रहे और चार दशकों से भी अधिक समय से स्थाई पद पर यहां पर कार्य कर रहे थे। हैरानी की यह बात थी कि 40 वर्ष से ज्यादा सेवा देने के बाद भी उन्हें कभी नियमित यहां पर नहीं किया गया है। रिकॉर्ड यहां पर मन की भी मौजूदा नीतियों और अदालती प्रश्नों की वजह से नियमितीकरण के पूरे हकदार यहां पर हैं। याचिकाकर्ता सुरेंद्र सिंह और राजेंद्र प्रसाद को पीआरटीसी के बनाला डिपो में पार्ट टाइम वाटर मैन के तौर पर यहां पर नियुक्त किया गया था। अब 40 वर्ष से ज्यादा समय तक लगातार वह पूर्ण कालिक बकरीद का कार्य करने के बावजूद उन्हें कभी विनियमित यहां पर नहीं किया गया और वह अभी भी सेवा में बने हुए हैं जबकि प्रसाद 2019 में यहां पर रिटायर हो गए थे और उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा भी यहां पर खटखटाया था। ताकि उन्हें नियमितकरण से इनकार को रद्द आसानी से किया जा सके। पीआरटीसी को पंजाब सरकार की 4 मार्च 1999 हुआ 23 जनवरी 2001 हुआ 15 दिसंबर 2006 की नीतियों के तहत जो उनकी सेवा थी उनको नियमित किए जाने का निर्देश दिया जा सके।
याचिका कर्ता के वकील ने दिया दलील
याचिकाकर्ता के वकील ने यहां पर दलील दिया है उन्होंने पूर्ण कार्यक्रम चालू के बराबर कार्य किया है। नवंबर 2004 से उन्हें न्यूनतम वेतनमान व महंगाई भत्ता यहां पर दिया जा रहा था जो कि नियम के माध्यम से उनके नियमित रोजगार के स्पष्ट स्वीकृत यहां पर था। याचिकाकर्ता कि यहां पर यह कहना था कि उनके मामले 1999 में 2021 जो नियमितीकरण नीति है इसके बारे में आ रहे हैं नीतियों के आधार पर तीन या 10 वर्ष की सेवा पूरी करने वाले जितने भी कर्मचारी हैं उनको स्वीकृत पदों पर पूरी तरीके से समायोजित यहां पर किया गया जाना था।
इस जवाब के दौरान पीआरटीसी के वकील के द्वारा यह तर्क दिया गया कि नियमितीकरण नीतियां लागू यहां पर नहीं होता। क्योंकि कर्ताओं ने सेवा के दौरान कभी भी निवेदन का ही मांग यहां पर नहीं किया था उनमें से एक तो रिटायर यहां पर हो चुके हैं। हालांकि निगम यह नहीं बता सका कि दोनों याचिका कर्ता 1980 के दशक की शुरुआत से लगातार सेवा में थे व्यवहार में उन्होंने नियमित कर्मचारी यहां पर माना था। जस्टिस बार सुप्रीम कोर्ट के स्टेट आफ़ कर्नाटक बनाम उमा देवी जैसे महत्वपूर्ण जो फैसला उनका हवाला देते हुए इस बात पर यहां पर जोर दिया कि राज्य एक आदर्श नियोक्ता के तौर पर व्यक्तियों का बिल्कुल भी शोषण नहीं कर सकता उन्हें दशकों तक अनिश्चित रोजगार में बिल्कुल भी नहीं रखा जा सकता है।
कोर्ट ने अपना यह निर्णय याचिका कर्ताओं का जो कार्य है वह स्थाई प्रकट का यहां पर है 40 वर्ष से अधिक समय तक स्थाई पदों पर उनका लगातार कार्य करना और संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के यहां पर पूरी तरीके से उल्लंघन था और यह अनुच्छेद सार्वजनिक रोजगार में समानता व निष्पक्षता की बुरी तरह से गारंटी देता है तो दोनों रेट यशिकाओं का स्वीकार करते हुए कोर्ट के द्वारा पीआरटीसी को प्रमाणित आदेश मिलने के 6 सप्ताह के भीतर ही याचिका कर्ता की सेवाओं को नियमित किए जाने का निर्देश दे दिया गया जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ के द्वारा कहा गया कि राज्य के कल्याणकारी होना चाहिए और आज का कर्ताओं का शोषण नहीं करना चाहिए। उन्हें यह स्थाई प्रकृति का कार्य करवा कर उपयुक्त और उचित नियुक्तियां नहीं देना पूरी तरीके से गलत है।
